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जो शख्स तेरे बीच था, ना जाने वो कब का मर गया, जाते

जो शख्स तेरे बीच था,
ना जाने वो कब का मर गया,
जाते जाते तेरी शख्सियत को,
धाराशाई कर गया,
यह बात नहीं हकीकत है,
ना जाने क्यों मैं कहते कहते डर गया,
तू मात्र इक खिलौना है,
किसी और के वजूद का,
अकड़ बाकी है ना जाने किस फितूर की,
बातें होती हैं तेरी खुद से मिलों दूर की,
ना जाने कितने टुकड़ों में तू बंट गया,
अपना वजूद देखकर खुद ही डर गया,
जो शख्स तेरे बीच था,
ना जाने वो कब का मर गया।

©Harvinder Ahuja
  # बिखरी शख्सियत

# बिखरी शख्सियत #ज़िन्दगी

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