नज़्म- शायरी या ग़ज़ल की पहली पंक्ति, ज़हन-ए-अज़ल- अंदर से मरा हुआ/ टूटा हुआ, ✍️
कोने में रखा किसी अधूरी नज़्म जैसा था
देखते देखते ज़हन-ए-अज़ल हो गया मैं,
वो ज़िंदगी मे स्याही सी बन कर क्या आई मेरी
कोरे कागज़ से फिर एक नई ग़ज़ल हो गया मैं !
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