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आज इत्मीनान से चाँद देख रहा था, कोशो दूर फैला आसमा

आज इत्मीनान से चाँद देख रहा था,
कोशो दूर फैला आसमान देख रहा था, 
कभी पेड़ों की छाँव,
तो कभी ठंडी बयार 
को महसूस कर रहा था,
मैं अपनी जिंदगी के चैन को जी रहा था।
साथ नहीं था किसी का, 
पर इस तन्हाई को 
साथ लिए फिर रहा था।
शायद मैं महसूस कर रहा था,
इस धड़कते हुए दिल को, 
यादों में बसी तस्वीर को।
पर क्यों?
क्यों मैं इस तन्हाई को जी रहा था?
शायद इस तन्हाई में,
मैं खुद को जी रहा था।
जिंदगी की इस भागा-दौड़ी में, 
एक पल खुद के साथ रह रहा था, 
शायद इस ख़ामोशी में,
 मैं जिंदगी को जी रहा था।

©Rudeb Gayen
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