हुश्न ने आपके पहले से घायल किया हीं था हमें अब तो मुस्कुराहट भी कहर बनकर आयी है इनायत, रहम, दर्द-ए-दवा कब से ढूँढते रहे हम अब जा के रज़ामंदी से आपकी, इस दिल ने सुकून पायी है... राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी ©मेरी दुनियाँ मेरी कवितायेँ हुश्न कातिलाना