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गांव से चला था शहर एक घर बनाने को उम्र गुज़री तन

गांव से चला था शहर 
एक घर बनाने को 
उम्र गुज़री तन्हाई में यहां 
खोज रहा हूं रिश्ता 
जिंदगी  संवारने को

उच्चे मकानों में
खो गया है इन्सान कहीं
आब दीवारें सिर्फ रह गई है 
दर्द ए दास्तान सुनानें को

रुखसत कर रही थी जब
मेरे गांव कि मिट्टी 
आंखें नम थी  उसकी
आब ख़ोज रहा हुं पगडंडी 
वापस घर जाने को 

गांव से चला था शहर .....।।

©Tafizul Sambalpuri
  #जिंदगी  Sudha Tripathi Anshu writer rasmi Yogendra Nath Yogi Sk Manjur