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मेरे मन की व्यथा पुरानी, हर कोई इसको जाने। वर्षों

मेरे मन की व्यथा पुरानी, हर कोई इसको जाने।
वर्षों बीते मिटी न अब तक,टूटा मन अंजाने।।
लाख जतन कर तन मन धन से,किये जतन हमेशा।
पीर मिटी न अब तक मन की,कौन इसे पहचाने।।
हर दम मैंने काँटें चुनकर, फूलों की सेज सजाई थी।
उलझ गये हैं काँटों में ही,कब बीत गये जमाने।।
तुमको पाकर सोचा था,राहत के पल आये हैं।
क्यों सुंदर पल छीन लिये, क्यों आये थे तड़पाने।।
टूटा मन यह सोच रहा है,सपने सुंदर पाले क्यों।
आँखों के आँसू बहा ले गये, सब सपन मेरे सुहाने।।

©Shubham Bhardwaj
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