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क्या यह मेरा प्यार इसी के लायक है। चाहत में इम्तेह

क्या यह मेरा प्यार इसी के लायक है।
चाहत में इम्तेहान कहां तक जायज़ है?

काट रहे हैं हर दिन सच की गर्दन को,
झूठ का ये अरमान कहां तक जायज़ है।।

पाल कर बैठे हैं सब दिल में दगा यहां,
नफ़रत का जहान कहां तक जायज़ है।।

अपने ही अब अपनों पर घात लगाते हैं ,
ऐसी ये दास्तान कहां तक जायज़ है।।

काले हैं अंदर से बाहर उजले उजले हैं,
ये जहरीली मुस्कान कहां तक जायज़ है।।

©Chanchal Hriday Pathak
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