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आग इस दिल की बुझाने के लिए ज़ख़्म कोई तो हो खाने क

आग इस दिल की बुझाने के लिए
ज़ख़्म कोई तो हो खाने के लिए 

हिज्र के ग़म को मनाने के लिए
ख़त नही है इक जलाने के लिए

ख़ुश नही रहता है ये नादान दिल 
है कहां वो भी सताने के लिए

धूल जमती जा रही है पत्तों पर
बूंद भी तो हो हटाने के लिए 

सांस लेते है तिरी ही दम से हम 
साज़िशें तुझको मिटाने के लिए 

इक सितारा भी यहां दिखता नही 
आस का सूरज जगाने के लिए 

ख़्वाब देखो याद लेकिन ये रहे 
उम्र गुज़रेगी सजाने के लिए 

दुश्मनी पर दोस्त आया है उतर 
क्या बचा है अब छिपाने के लिए 

यूं हुआ वो घोंसले से फिर जुदा 
है भटकता आब दाने के लिए 

शोक मत करना कभी माता मिरी  
कम नहीं है सर कटाने के लिए 

हम सियासत जानते हैं 'बैंज़िल'
दोस्त तो हो आजमाने के लिए

©BenZil (बैंज़िल)
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