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मित्र (दोहे) मित्र वही अब चाहिए, समझे मन के भाव।

मित्र (दोहे)

मित्र वही अब चाहिए, समझे मन के भाव।
विपदा से तारे हमें, भर दे सारे घाव।।

मित्र उसे अब जानिये, जो दे हर पल साथ।
बुरे वक्त में वो कभी, छुड़ा न ले तब हाथ।।

धन दौलत के मित्र हैं, मतलब के ये जान।
दुविधा ये सबसे बड़ी, कैसे हो पहचान।।

मीठा मीठा बोल कर, छुपा यही पहचान।
लालच में डूबे वही, दिखा रहे हैं शान।।

सही गलत के भेद को, समझाते इंसान।
मित्र उसी को जानिये, ये उसकी पहचान।

मात पिता वो मित्र हैं, रहते सदैव साथ।
मुश्किल में भी वो कभी, नहीं छुड़ाते हाथ।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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