रहने दो ख़ाली दिल उसमे दर्द पनपते बहुत है बाद वस्ल के...... कांटे याद के चुभते बहुत है ढकेल देता हूं दूर तक... महसूस होता पास है चंद पल गुजारे जो.... वहीं पास रहते बहुत है मिलने ना दो उन्हें..... ये दिल-ए-रेजा रहने दो दास्तां-ए-ज़िन्दगी में... बेफिक्र शिकवे बहुत है लूट ही लेते है...... बहते आब-ए-चश्म के मिरे कब तक बचाऊंगा.... ये दर्द को सहते बहुत है रोक पाता नहीं..... दीदा-ए-तर जब उभरती है भरे दिल से तब... समेटे जज़्बात बहते बहुत है फिर आ जाते है.... मिलकर दर्द-ए-दिल करने ख़ाली दिल को देख मेरे.. अपने जलते बहुत है पता नहीं कहां कहां से लेकर आते है दर्द इतना ना कहकर भी........ ख़ाली दिल भरते बहुत है शुक्र उस खुदा का..... जो इतने करीबी मिले है चाहूं गर तन्हा चलना... तब साथ चलते बहुत है