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यात्रा (दोहे) खर्राटों की होड़ थी, यात्रा थी बेकार

यात्रा (दोहे)

खर्राटों की होड़ थी, यात्रा थी बेकार।
नहीं ठीक से सो सका, धीमी थी रफ्तार।।

गाडी की रफ्तार ने, किया हाल बेहाल।
खर्राटों ने कान में, खूब सुनाई ताल।।

अलग अलग आवाज़ थी, खर्राटों की जान।
विचलित भी मन तब हुआ, बात अभी तू मान।।

आँखें भारी ही रहीं, फिर आई थी भोर।
अब टाँगे बस्ता चला, निकला घर की ओर।।

तंग हुआ मैं भीड़ से, कैसे करूँ बखान।
घर पर अब मैं आ गया, पूरे हों अरमान।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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