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बोझिल साँसे ज़िन्दगी डुबा रही हैं, हर अपने से आहत

 बोझिल साँसे ज़िन्दगी डुबा रही हैं,
हर अपने से आहत हो जग से उबा रही हैं..!

कश्मक़श बचने की नहीं रही अब,
मौत ही मेहबूबा की तरह न जाने क्यों लुभा रही है..!

बेचैनी से दिल की धड़कन ये,
सारी रात यूँ पलकें भिगा रही है..!

बंद हो रही हैं आँखें और,
रूह चित्त जगा रही है..!

भंग होती नज़र आ रही हैं ख़ुशियाँ सारी,
हर पल हर घड़ी ज़िन्दगी रुला रही है..!

नींव जीवन की कुछ यूँ ही डगमगा रही है,
छोड़ ज़िन्दगी का दामन मौत करीब बुला रही है..!

©SHIVA KANT
  #bojhilsanse