कंक्रीटों के जंगल में बसा जानवर हूँ दौड़ता हाँफता थकता दिनभर हूँ अस्तित्व, पहचान, चरित्र की खातिर झूठ, फरेब, चालाकी से कामगर हूँ शास्त्र, वेद, विज्ञान भूल बैठा बेशर्मी, बेगैरत, बेदबी ओढ़ बैठा हंसी, खुशी, सुकून खो डाले गुस्सा, तनाव,ज़िद खोज बैठा घमंड, शोशा, संपत्ति के प्रदर्शन मैं गरीब, कमज़ोर, लाचार के शोषण मैं आँसू, सपनो, आशाओं को रौंदते हुए तुम यह या वो नहीं, सिर्फ मैं, मैं और मैं जीर्ण, क्षीण , विक्षप्त हो चुका हूं तन्हा,बुज़दिल,पागल थक चुका हूं तप, त्याग,दान की लकड़ी पकड़े मोक्ष, सत्य,शिव की राह बढ़ चुका हूं यह मैं, मेरा,मुझसे फिर भी नहीं जाता धर्म की राह पर भी यहीं ख्याल आता बुद्ध, साईं, कबीर बनूँ तो मैं ही बनूँ साल, मौसम, जीवन नही, बस जल्दी बनूँ #कशमकश #दौड़ #इंसान #सत्य #मैं