एक समय .... जब भाग रही थी, भयभीत हो... स्वयं के दुःखो से, पिडाओं से, स्वयं से उपजी, अपनी ही भावनाओ से... नेत्र मूंदे, खोलने का भय था, जाने क्या होगा, इसका ही बस डर था । थी प्रकाश की चाह, जो मुझ को प्रकाशित करे.... जो बस मेरे ही लिए , भोर का सूरज खोले । श्वास से श्वास जोड़... दूर गगन में ले जाये, अपनी उर्जित रश्मियों से मुझको आलंकृत करे । तत् क्षण कुछ घटित हुआ....!!! इधर उधर रमता मन, जाने कैसे स्थिर हुआ ..... भीतर में एक, शुन्य अवस्था साहस ही छाई थी .... स्वयं के अस्तित्व की नई पहेली खुल के आई थी । एक क्षण आभास का #yqdidi #yqbaba #yqpoetry #kavita #जीवन_का_सत्य #आत्मज्ञान #आत्ममंथन