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जब उठा पलकें गिरा देता है राज सब दिल के बता देता

जब उठा पलकें  गिरा देता है
राज सब दिल के बता देता है

अपने बाहों में समा के हमको
लज्जते - वस्ल  मजा  देता  है

बैचेनी  दिल की  बढ़ा कर मेरे
खिलबते - खास  टला देता है

जाम तो  लबरेज है  साक़ी के
अपने आँचल में  छुपा देता है

इश्क जब फुहार बन गिरता है
शाने  से आँचल  हटा   देता है

इश्क में ज़ख्म मिले है सबको
मेरे  जख्मो  कि  दवा  देता है 

लहजे में  फर्क जरा जो आये 
वो  मुहब्बत की  सदा देता है
    ( लक्ष्मण दावानी ✍ )
लज्जते-वस्ल  - मिलन का आनंद
खिलबते-खास - एकांत मिलन

©laxman dawani
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