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तेरे जिस्म की खुशबू, चंचल निगाहें, ये मुस्कान तेरी

तेरे जिस्म की खुशबू, चंचल निगाहें, ये मुस्कान तेरी। 
ताज्जुब नहीं क्यों यह कलाम सिर्फ तुझे लिखना चाहता है।

सोचा था की कट जाएगी उसकी यादों के सहारा जिंदगी। 
पर अब वो इन यादों को भी मुझसे दूर चाहता है। 

इस कलम की स्याही, अब सुखने लगी है । 
जब से उसने कहा की वो मुझसे रिश्ता बेगाना चाहता है। 

ये खामोशी ये नज़रअंदाज़ गी, इतनी तकलीफ़ क्यों?
बस एक बार कह दे तू मुझे नहीं चाहता है। 

नज़र अंदाज हुए सवालो का ज़ख़ीरा । 
बस इक आखिरी बेबाक गुफ्तगु चाहता है ।

©कलम
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