उत्तरकाशी में गोमुख के मुहाने से निकलते हुएअलकनंदा और भागीरथी मिलकर जब आगे
बढ़ती हैं तो होता है उद्गम पतित-पावनी निर्मल
गंगा का।जो आगे बढ़ते हुए प्रदान करती है
सद्भावना समस्त प्राणियों को।
गंगा का अविरल, निरंतर अर्थात बिना रुके हुए बहने वाला रूप, श्वेत रंग लिए हुए प्रदर्शित करता है उसकी शांति, नम्रता और विनम्रता को।
जो बिना मार्ग से भटके, असीमित पर्वतों और चट्टानों को पार करते हुए धरती पर नवजीवन का संचार करती है। इसलिए तो इसे माँ कहा जाता है। जो मोह रूपी भावों से परे अपनी ममतामयी कलरव की गुंजन से आह्लादित करती है समस्त प्राणी जीवन को।
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