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नदी के दोनों तट हैं मौन, सुना पर कानों ने सम्वाद।

नदी के दोनों तट हैं मौन, सुना पर कानों ने सम्वाद। 
खुले जब बंद प्रणय के पृष्ठ, जगी तब महकी-महकी याद।।

हृदय के टुकड़े हुए अनेक, मिले अपनों से जब आघात। 
हुई जिस समय भोर से दूर, बिलख कर रोयी थी तब रात। 
चैन से सोते कैसे प्रश्न, तड़प कर जाग उठी फ़रियाद।।

तुम्हें यदि जाना ही था दूर, हुए क्यों अंतर्मन के पास। 
खिलाए क्यों निष्ठा के फूल, भुगतना था जब यों मधुमास। 
छलक आता आँखों में नीर, सिसकता फिर अन्तस का नाद।। 

लिखा विधि ने ये कैसा भाग्य, बताते नहीं, हुए क्यों रुष्ट? 
नहीं यदि मेरा प्रेम पुनीत, भला फिर किसका पावन पुष्ट? 
अभी तक चिन्तन में हूँ लीन, करूँ किससे, कैसे प्रतिवाद।।

सुना था खोना भी है रीति, न आया कुछ भी मेरे हाथ। 
किंतु आशा है अब भी शेष, मिलेगा पुनः तुम्हारा साथ। 
नहीं था कुछ भी तुमसे पूर्व, बचेगा शून्य तुम्हारे बाद।।

©RJ राहुल द्विवेदी 'स्मित'
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