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ग़ज़ल क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है । मान

ग़ज़ल

क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है ।
मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।।

दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे ।
उनकी खातिर दिल अब महतारी होने लगता है ।।

रूठ नही जाएं हमसे हरपल चिंता है रहती ।
सोंच सोंच कर दिल मेरा भारी होने लगता है ।।

झुक जाता था शीश हमारा देख सामने जिनको ।
रिश्तों का वो यारों व्यापारी होने लगता है ।।

कितने और जन्म ले लूँ बोलों मैं उनकी खातिर ।
हर जीवन तो उनका ही आभारी होने लगता है ।।

माँग भरा शृंगार कराया अपना हर सपना भूला ।
मगर प्रीत माँगता तो भिखारी होने लगता है ।।

दो टूके भी खिला न सकता बाते करता ऊँची ।
आते द्वार भिखारी भण्ड़ारी होने लगता है ।।

१८/०२/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल

क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है ।

मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।।


दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे ।
ग़ज़ल

क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है ।
मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।।

दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे ।
उनकी खातिर दिल अब महतारी होने लगता है ।।

रूठ नही जाएं हमसे हरपल चिंता है रहती ।
सोंच सोंच कर दिल मेरा भारी होने लगता है ।।

झुक जाता था शीश हमारा देख सामने जिनको ।
रिश्तों का वो यारों व्यापारी होने लगता है ।।

कितने और जन्म ले लूँ बोलों मैं उनकी खातिर ।
हर जीवन तो उनका ही आभारी होने लगता है ।।

माँग भरा शृंगार कराया अपना हर सपना भूला ।
मगर प्रीत माँगता तो भिखारी होने लगता है ।।

दो टूके भी खिला न सकता बाते करता ऊँची ।
आते द्वार भिखारी भण्ड़ारी होने लगता है ।।

१८/०२/२०२३    -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल

क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है ।

मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।।


दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे ।

ग़ज़ल क्यों इतना मन मेरा दुखयारी होने लगता है । मान खुदा उन्हें ये दिल पुजारी होने लगता है ।। दूर दूर के नाते थे बंधन में जो बाँधें थे । #शायरी