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यूं तुम्हारे पांव मेरे दिल पे आहिस्ता न रखो। सुबह

यूं तुम्हारे पांव मेरे दिल पे आहिस्ता न रखो।
सुबह मिलने आओ अब रात से रिश्ता न रखो।।

अबकी आये आप तो फिर ना जाना लौट कर।
जो अधूरा रह ही जाए ऐसा ये किस्सा न रखो।।

जिसमें मायूसी हो हमदम और ज़िंदगी बेरंग हो,
तुम मेरी दीवानगी का इतना सा हिस्सा न रखो।।

अब सताओ न सनम होगा क्या हासिल तुम्हें,
सुनो ना अब दिल दुखाने का कोई नुख्ता न रखो।।

इस "हृदय" को जांचों परखो चाहे जितनी भी दफा,
 तुम ये अपने शक की बुनियादों को यूं पुख़्ता न रखो।।

©Chanchal Hriday Pathak
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#चंचल_हृदय_पाठक