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गीतिका:– बूंद बादलों  से बूँद  गिरकर सागरों  में 

गीतिका:– बूंद

बादलों  से बूँद  गिरकर सागरों  में  जो  समायी।
मस्त लहरों में बदल कर जा तटों के अंग भायी॥

बूँद जो जाकर छुपी वारीश की गहराइयों में।
सीपियों के साथ मिलकर मोतियों की लड़ बनायी॥

प्यास चातक की बड़ी थी आस पहली बूँद की थी।
स्वाति की बूँदें गिरी जब प्यास तब उसने बुझायी॥

बर्फ़ का अंबार लगता बूँद बूँदों से मिलें जब।
फिर पहाड़ों पर बिखर के, श्वेत चादर सी बिछायी॥

बूँद धरती पर पड़ी जो, ताल नदियां बाग चमके।
फिर किसानों की फसल भी, झूमकर खुश लहलहायी॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
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