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कि तुम ना थे मन के सारे मनन व्यर्थ थे। तुमको देखा

कि तुम ना थे मन के सारे मनन व्यर्थ थे। तुमको देखा नहीं था नयन व्यर्थ थे।
 तुम बिना जिंदगी के सभी आँकलन।
 थे महज आँकलन,आँकलन व्यर्थ थे। 
इतने दूर थे कि दूरियों के मेल हो गए।
 हम शहर के पहले ही रुकी सी रेल हो गए। अपनी अपनी याद से लिपटती बेल हो गए। तुम हमारा खेल हम तुम्हारे खेल हो गए।
 एक घड़ी में साथ साथ जैसे दो जनम रहे। जिंदगी के साथ जिंदगी से थोड़ा कम रहे। थोड़े दिन तो जग में अपने प्यार के भरम रहे।
 फिर बची कहानियां ना तुम रहे ना हम रहे। अधबसे से शहर में अपने ख्वाब लेके आए थे।
हर सवाल का गलत जवाब लेके आए थे।
 प्रेम की गली में सब शराब लेके आए थे। हम बहुत खराब थे किताब लेके आए थे।

©Ankit Surothiya 
  यादों का झरोखा-2

यादों का झरोखा-2 #शायरी

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