•| उल्टी कविता |• कब्रिस्तान में एक रात अनगिनत कब्रों के साथ गुज़ारी मैंने आराम से एक उस कब्र के प्यार से वो कब्र जो थी मेरे पति की रक्षा की जिन्होंने मरते दम तक वतन की छोड़ गए अकेले जो मुझे क्यों नहीं दिखता कुछ देश के आगे तुझे उसी देश की रक्षा के ख़ातिर अब मेरी जान भी है हाज़िर।। (अब आख़िर से पढ़ें।) •| उल्टी कविता |• (Reverse Poem) कब्रिस्तान में एक रात अनगिनत कब्रों के साथ गुज़ारी मैंने आराम से एक उस कब्र के प्यार से वो कब्र जो थी मेरे पति की