बस यूँ ही बैठे बैठे फिर किस्सों में खोता हूँ और पुरानी भूलों के, उन हिस्सों को लेकर ही नम आँखों के आँसू से कुछ दाग पुराने धोता हूँ .. जीवन के कोरे कागज़ पर जो थोड़ी कालिख बिखर गई थी कुछ रेखाएँ टेढ़ी मेढ़ी हाथों में फिर निखर गई थी खुद को उनसे किये जुदा अब ख्वाबों के बीज नये बोता हूँ कुछ दाग पुराने धोता हूँ .. निपट अकेलेपन में जब भी मैं फिर से खुद में खोता हूँ मेरी उन भूलों को लेकर जीभर फिर से रो लेता हूँ दिल को ऐसे हल्का कर कुछ दाग पुराने धोता हूँ .. कुछ रिश्ते बन के टूटे थे राहें कुछ आकर लौटी थीं जो पूरे ना हो पाये सपनें उन सपनों से लिये विदा अब आगे की सुधि लेता हूँ कुछ दाग पुराने धोता हूँ .. वो धीमी आँच अभी तक है जो अन्तर्मन को जला रही है कुछ शंकाएँ अब भी हैं जो मन तटस्थ को हिला रही हैं आशाओं के बीच भँवर में हर आशंका धोता हूँ कुछ दाग पुराने धोता -Prateek Praveen #Hindi #hindipoetry #prateekhindikavita #kavita