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ज़िन्दगी भर हाथ मैं मलता रहा । नूर उसका देखकर चलता

ज़िन्दगी भर हाथ मैं मलता रहा ।
नूर उसका देखकर चलता रहा ।।१

कुछ नही देगी यहाँ दुनिया मुझे ।
बेवजह मैं आस क्यूँ करता रहा ।।२

सब उसी को सुन मिले तकदीर से ।
कर्म पथ पर जो यहाँ चलता रहा ।।३

है बला की खूबसूरत नाज़नी ।
देख जिसको हाथ मैं मलता रहा ।।४

क्या क़सीदे मैं पढूँ उनके लिए ।
जो हमारी साँस में घुलता रहा ।।५

जानता हूँ मैं उसे पिछले जन्म से ।
जो बदल कर रूप नित मिलता रहा ।।६

चाँद सी महबूब हो मेरी प्रखर ।
सोचकर इस आग में जलता रहा ।।७

१६/१२/२०२३     -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ज़िन्दगी भर हाथ मैं मलता रहा ।

नूर उसका देखकर चलता रहा ।।१


कुछ नही देगी यहाँ दुनिया मुझे ।

बेवजह मैं आस क्यूँ करता रहा ।।२
ज़िन्दगी भर हाथ मैं मलता रहा ।
नूर उसका देखकर चलता रहा ।।१

कुछ नही देगी यहाँ दुनिया मुझे ।
बेवजह मैं आस क्यूँ करता रहा ।।२

सब उसी को सुन मिले तकदीर से ।
कर्म पथ पर जो यहाँ चलता रहा ।।३

है बला की खूबसूरत नाज़नी ।
देख जिसको हाथ मैं मलता रहा ।।४

क्या क़सीदे मैं पढूँ उनके लिए ।
जो हमारी साँस में घुलता रहा ।।५

जानता हूँ मैं उसे पिछले जन्म से ।
जो बदल कर रूप नित मिलता रहा ।।६

चाँद सी महबूब हो मेरी प्रखर ।
सोचकर इस आग में जलता रहा ।।७

१६/१२/२०२३     -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ज़िन्दगी भर हाथ मैं मलता रहा ।

नूर उसका देखकर चलता रहा ।।१


कुछ नही देगी यहाँ दुनिया मुझे ।

बेवजह मैं आस क्यूँ करता रहा ।।२

ज़िन्दगी भर हाथ मैं मलता रहा । नूर उसका देखकर चलता रहा ।।१ कुछ नही देगी यहाँ दुनिया मुझे । बेवजह मैं आस क्यूँ करता रहा ।।२ #शायरी