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सनम छेड़ो न मुझको तुम, निशा वैसे नशीली है, बहक जाऊ

सनम छेड़ो न मुझको तुम, निशा वैसे नशीली है,
बहक जाऊँ न इक पल में, हया मेरी लचीली है ।
सितम ढाती हैं मुझपर ये तुम्हारी मदभरी आँखें,
तेरी मिश्री भरी बातें गज्ज़ब की वो रसीली हैं ।

सनम छेड़ो न मुझको तुम, निशा वैसे नशीली है, बहक जाऊँ न इक पल में, हया मेरी लचीली है । सितम ढाती हैं मुझपर ये तुम्हारी मदभरी आँखें, तेरी मिश्री भरी बातें गज्ज़ब की वो रसीली हैं । #शायरी

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