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जहां में एक दिन हंबल बनूंगा, कड़कती ठंड में कंबल ब

जहां में एक दिन हंबल बनूंगा,
कड़कती ठंड में कंबल बनूंगा,
जो बंजर सी जमी को सींचकर उपवन बना दे,
बिखरकर आसमा में मैं वही बादल बनूंगा।
अभी तो हाफ कहते हैं मेरे पहचान वाले,
जमाना जान जाएगा मैं फुल पागल बनूंगा।
बनूंगा दीप मैं जो रात में हरता अंधेरा,
शहर में ओस की बूंदों सा मैं शीतल बनूंगा।
अभी खामोश हूं और सुन रहा ताने सभी के,
शहर भी गूंज उठेगा मैं वो हलचल बनूंगा।
जो मुझको सोच बैठे हैं कि मैं बेकार ही हूं,
वो ये भी जान लें मैं एक दिन अव्वल बनूंगा।
बनकर फूल की खुशबू निखरूंगा फिज़ा को,
जरा सा आज बदला हूं मैं बाकी कल बनूंगा।
नहीं जाऊंगा मैं भगवान की चौकठ से अंदर,
मैं फिर अगले जनम में पैर की चप्पल बनूंगा।
मैं बह जाऊंगा सबकी आंख में बन कर के आंसू,
नहीं तो रोज सबकी आंखों का काजल बनूंगा।
जहां में एक दिन हंबल बनूंगा,
कड़कती ठंड में कंबल बनूंगा।

©Ashish Tripathi "kumar"
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