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उजालों की दुनिया, तुम्हें रास आये अंधेरों में डूब

उजालों की दुनिया, तुम्हें रास आये 
अंधेरों में डूबी, वफ़ा कह रही है... 

बड़ी चोट खाई,ये दिल का लगाना 
ना तुम याद करना,ना तुम याद आना 
खुदा से यही इक, दुआ कह रही है.. 
अंधेरों में डूबी वफ़ा कह रही है... 

बहुत साथ पाया, बहुत जी गये हम 
मिला क्या हमें दो, घड़ी ना रुके ग़म 
कहीं दूर मंजिल, खफ़ा कह रही है..
अंधेरों में डूबी, वफ़ा कह रही है... 

चराग़-ए-मोहब्बत धुआं अब हमारा
ना कोई उमंगे,ना कोई सहारा 
हसीं दिल्लगी की, सज़ा कह रही है.. 
अंधेरों में डूबी वफ़ा कह रही है... 

ये उल्फ़त की रस्में ये वादों की बातें 
नहीं भूलता दिल मिलन की वो रातें 
शरारत तुम्हारी,जफ़ा कह रही है..
अंधेरों में डूबी वफ़ा कह रही है... 

ना सोचा था हमने,सिला वो मिला है 
मेरा गुल किसी और, गुलशन खिला है 
ख़ुदा की फ़क़त यह, रज़ा कह रही है 
अंधेरों में डूबी वफ़ा कह रही है...

©अज्ञात
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