कुछ यादें तोड़ कर ख्वाहिशें तोली थी यकीन तेरी यादों का वजन ज्यादा था ख्वाहिशें बहुत हल्की थी। फिर भी न जाने क्यूँ ....... तुम्हारी हर बात मेरी ख्वाहिशों पे अटक जाती थी और हर बात बिगड़ जाती थी मैं तेरी हर बात को चुन कर आँखों में रख लेती थी। क्योंकि मेरी ख्वाहिश सिर्फ तुम ही थे। तेरी बातें बहुत वजनी निकली तेरी यादों से भी ज्यादा नतीजतन हमारी मोहब्बत फसाना बनके रह गयी। हम दोनों को एक अलग अलग जहाँ दे कर। पारुल शर्मा कुछ यादें तोड़ कर ख्वाहिशें तोली थी यकीन तेरी यादों का वजन ज्यादा था ख्वाहिशें बहुत हल्की थी। फिर भी न जाने क्यूँ ....... तुम्हारी हर बात मेरी ख्वाहिशों पे अटक जाती थी और हर बात बिगड़ जाती थी मैं तेरी हर बात को चुन कर