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खर्च (दोहे) खर्चों की सीमा नहीं, ऐसा है यह दौर। क

खर्च (दोहे)

खर्चों की सीमा नहीं, ऐसा है यह दौर।
कहते हैं सज्जन सभी, करना इस पर गौर।।

खर्चों ने तोड़ी कमर, बना हुआ नासूर।
जीवन यह बद्तर लगे, कैसा यह दस्तूर।।

दिन प्रतिदिन कीमत बढ़े, खर्चों का विस्तार।
जिन्हें नौकरी है नहीं, माने दिल से हार।।

खुद को भी पीड़ित करें, कुछ औरों को जान।
लूट करें वे शान से, बनते हैं नादान।।

खर्चों के वश में सभी, कुछ करते तकरार।
जीवन में उलझन बढ़े, घटना के आसार।।

यही विवश्ता तोड़ती, अपनों के संबंध।
प्रेम भाव से दूर हैं, आती है दुर्गंध।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit
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खर्च (दोहे)

खर्चों की सीमा नहीं, ऐसा है यह दौर।
कहते हैं सज्जन सभी, करना इस पर गौर।।

खर्चों ने तोड़ी कमर, बना हुआ नासूर।
deveshdixit4847

Devesh Dixit

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