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बहुत हुआ चलना अकेले, अब और नहीं ज़िन्दगी और इसके झम

बहुत हुआ चलना अकेले, अब और नहीं
ज़िन्दगी और इसके झमेले अब और नहीं
कहीं कैद है जो ज़िन्दगी के पलछीन अजर
खयालों के खाई में उतर जाना अब और नहीं
अब और नहीं कि उम्मीदों से मिले तन्हा सफर
मंज़िल के नाम पर, ख़ुद को मिटाना,अब और नहीं

©paras Dlonelystar
  अब और नहीं
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