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ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि

ग़ज़ल :-
बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं
कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१
हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।
सकल संसार के रहबर खड़े हैं ।।२
करें कैसे तुम्हारा मान अब हम ।
पलटकर देखिए झुककर खड़े हैं ।३
डरूँ क्यूँ आँधियों को देखकर मैं ।
अभी पीछे मेरे गुरुवर खड़े हैं ।।४
मसीहा जो बताते थे खुदी को ।
वही अब देख बुत बनकर खड़े हैं ।।५
अभी तुम बात मत करना कोई भी ।
हमारे साथ सब सहचर खड़े हैं ।।६
मिली है योग्यता से नौकरी यह ।
तभी तो सामने तन कर खड़े हैं ।।७
पकड़ लो हाथ तुम अब तो किसी का ।
तुम्हारे योग्य इतने वर खड़े हैं ।।८
निभाओ तो प्रखर वादा कभी अब ।
अभी तक देखिए छत पर खड़े हैं ।।
२६/०३/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं

कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१


हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।
ग़ज़ल :-
बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं
कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१
हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।
सकल संसार के रहबर खड़े हैं ।।२
करें कैसे तुम्हारा मान अब हम ।
पलटकर देखिए झुककर खड़े हैं ।३
डरूँ क्यूँ आँधियों को देखकर मैं ।
अभी पीछे मेरे गुरुवर खड़े हैं ।।४
मसीहा जो बताते थे खुदी को ।
वही अब देख बुत बनकर खड़े हैं ।।५
अभी तुम बात मत करना कोई भी ।
हमारे साथ सब सहचर खड़े हैं ।।६
मिली है योग्यता से नौकरी यह ।
तभी तो सामने तन कर खड़े हैं ।।७
पकड़ लो हाथ तुम अब तो किसी का ।
तुम्हारे योग्य इतने वर खड़े हैं ।।८
निभाओ तो प्रखर वादा कभी अब ।
अभी तक देखिए छत पर खड़े हैं ।।
२६/०३/२०२४    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :-

बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं

कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१


हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।

ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं । #शायरी