'किसान चाची' 1- नार बिहार प्रांत की, वामा अति वो शांत थी। स्व जीवन में क्रांत थी, काज करती लगन।। कोख उसकी ना भरी, संग न थी सहचरी। आँखें आँसुओं से भरी, सहे ज्वाल सी अगन।। ब्याह के नौ साल बाद, कोख हो गई आबाद। मन का मिटा विषाद,खिला कोख में सुमन।। हुई घर से अलग,लगा कतराने जग। ढूँढ लिया नया मग, खोल अचार भवन।। 2- शाक भाजी तरकारी, उगा बैठी प्यारी-प्यारी। खाद्य तकनीक सारी, सीखी होकर मगन।। फैल गया काम धाम, चाची हुआ जग नाम। रात दिन बैठ घाम, किया श्रम था गहन।। मंत्री संत्री करें वाह, जगी अचार की चाह। चाची की निहारें राह, करें उसको नमन।। बढ़ गए हाथ तब, बेटी भी थी साथ अब। कष्ट मिट गए सब, ठंडी हो गई तपन।। ©Godambari Negi #किसान #चाची