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रिश्ते अजीब हैं कि ज़माना ख़राब है । मैं ही बुरा हू


रिश्ते अजीब हैं कि ज़माना ख़राब है ।
मैं ही बुरा हूँ या मेरा लहज़ा ख़राब है ।

यूँ हम चले हमेशा सच्चाई की राह पर ।
क्यों वक़्त कह रहा है ये रस्ता ख़राब है ।

कब तक मुझे रखेगा तू इस तन की क़ैद में ।
अब उम्र ढल रही है औ पिंजरा ख़राब है ।

जो ज़िद पे आऊँ फिर मैं ख़ुदा से भी न डरूँ ।
मुझसे न उलझना मेरा ग़ुस्सा ख़राब है ।

तुम भी न समझ पाये उसे ये ग़ज़ब हुआ ।
वो शख़्स लाजवाब है लगता ख़राब है ।

तुमसे न प्यार कोई करेगा जहान में ।
तुम आदमी भले हो ये दुनिया ख़राब है ।

लोगों की मुश्किलों का कोई हल नहीं मिला ।
अब क्या करें कि ये भी मसीहा ख़राब है ।

©दीप बोधि
  #Crescent एक ग़ज़ल
रिश्ते अजीब हैं कि ज़माना ख़राब है ।
मैं ही बुरा हूँ या मेरा लहज़ा ख़राब है ।

यूँ हम चले हमेशा सच्चाई की राह पर ।
क्यों वक़्त कह रहा है ये रस्ता ख़राब है ।

कब तक मुझे रखेगा तू इस तन की क़ैद में ।

#Crescent एक ग़ज़ल रिश्ते अजीब हैं कि ज़माना ख़राब है । मैं ही बुरा हूँ या मेरा लहज़ा ख़राब है । यूँ हम चले हमेशा सच्चाई की राह पर । क्यों वक़्त कह रहा है ये रस्ता ख़राब है । कब तक मुझे रखेगा तू इस तन की क़ैद में । #शायरी

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