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कितनी हसीन है नौकरी तू, तेरे लिए हम घर छोड़ चले आ

कितनी हसीन है नौकरी तू, 
तेरे लिए हम घर छोड़ चले आते है।
अपने आंगन,अपनी गलियां,
दोस्तों के संग खेली होलियां, 
पल भर में भूल जाते हैं।

आकर यहां बस मिला है एक कमरा 
जिसमे अनजानों के संग रहना मुझे पड़ा।
हां
नमी आंखों में छिपा मुस्कुराना सीख गया हूं
प्रीतम हूं तुझसे प्रीत निभाना सीख गया हूं ।

घर परिवार रिश्ते नाते सब यूंही रह जाते है,
नौकरी पाकर भी तो हम बस मारे ही जाते है, 

सब कहते है नौकरी महल दिला दिया मुझको ,
मगर सच है बात बात पर "नौकर हूं" एहसास कराती हो सबको।

किसको पसंद नही अपने हुनड़ का ताज पहनना,
अपने अच्छे काम का कहानियां सुनना 
मगर हालात कुछ बेअसर कर जाते है,
हार कर 18- 20 साल के बच्चे नौकरी करने आते है।

ये वही बच्चे है जो खुद की भी नही सुनते थे 
आज टारगेट के चक्कर में कई बार सुन जाते है
ना कह सकते है घर वालें से ना हार कर जा सकते है,
कितनी है तू बेरहम नौकरी ऐसे कौन सताते है।

©Pritam Prashun
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