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सफर (30_12_22) आज फिर से एक सफर है, वास्तव में दूर

सफर (30_12_22)
आज फिर से एक सफर है,
वास्तव में दूर हमसफर है।
खुशियों में उमड़ कर झूम रहे सभी,
सफर दूरीयों से भरा अभी।
छाया है अभी चारो ओर अंधेरा ,
झूम रहे गाड़ी में जब सब।
सामने मुस्कुराते चहरे खड़े थे,
खुशियो से भरी चहल पहल थी।
वो मासूम चहरों की रोनक बड़ी बाबुली ,
वो भटकती आत्मा जैसा शरीर उन सबका।
 एक पल भर में नाचना गाना का सफर, 
भूल गए कुछ छण के लिए दुख सभी।
अभी तो बाकी था सफर  गाड़ी रूक पड़ी ,
मनमोहक से सभी फोटो खिंचवाने लगे।
सफर हमारा  टिहरी चंबा से गुजरा,
तभी  टिहरी झील को महकता बोल पड़े हम।
अभी तो दृश्य बहुत सुन्दर सुशील लग रहा,  
लेकिन कुछो की अभी सूटिंग चल ही रही।
चल पड़े हम आगे अपने सफर में ,
आखिर पहुंच ही गये अपने धाम को।
माता का स्वरूप ऊँचे पहाड़ो में दिखा जो ,
धन्य हो गया दुनिया का प्यार। 
महसूस हुआ रहूँ मैं मोह माया से दूर, 
 यूँ ही खुद को समर्पण करू माता स्वरूप में।
वो अद्भूत नाजारा जहां धन्य हो हम,
प्रकृति सौन्दर्य की विवेचना करना।
वो मौसम का यूँ ही आना जाना,
सबको अपने प्यार में ढल देना।

©Shivani Thapliyal #Winters 31 December
सफर (30_12_22)
आज फिर से एक सफर है,
वास्तव में दूर हमसफर है।
खुशियों में उमड़ कर झूम रहे सभी,
सफर दूरीयों से भरा अभी।
छाया है अभी चारो ओर अंधेरा ,
झूम रहे गाड़ी में जब सब।
सामने मुस्कुराते चहरे खड़े थे,
खुशियो से भरी चहल पहल थी।
वो मासूम चहरों की रोनक बड़ी बाबुली ,
वो भटकती आत्मा जैसा शरीर उन सबका।
 एक पल भर में नाचना गाना का सफर, 
भूल गए कुछ छण के लिए दुख सभी।
अभी तो बाकी था सफर  गाड़ी रूक पड़ी ,
मनमोहक से सभी फोटो खिंचवाने लगे।
सफर हमारा  टिहरी चंबा से गुजरा,
तभी  टिहरी झील को महकता बोल पड़े हम।
अभी तो दृश्य बहुत सुन्दर सुशील लग रहा,  
लेकिन कुछो की अभी सूटिंग चल ही रही।
चल पड़े हम आगे अपने सफर में ,
आखिर पहुंच ही गये अपने धाम को।
माता का स्वरूप ऊँचे पहाड़ो में दिखा जो ,
धन्य हो गया दुनिया का प्यार। 
महसूस हुआ रहूँ मैं मोह माया से दूर, 
 यूँ ही खुद को समर्पण करू माता स्वरूप में।
वो अद्भूत नाजारा जहां धन्य हो हम,
प्रकृति सौन्दर्य की विवेचना करना।
वो मौसम का यूँ ही आना जाना,
सबको अपने प्यार में ढल देना।

©Shivani Thapliyal #Winters 31 December