रात चांद चमकने में कुछ जो हल्का गहरा हो गया उसके हुस्न पर चांदनी रात का पहरा हो गया। और ख्वाबों को जन्नत बना कर दिन को काटता हूं दोस्तों में खड़ा होकर इसी जन्नत को बांटता हूं।। भूल जाना कभी कभी उसकी याद में नींद ना लेना सारी रात उसके ख्वाब के बिना जैसे नर्क में झांकता हूं। जब कभी बुखार में उसके कंप कपांते होठों को देखता हूं ♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️♥️ ना जाने मैं क्यों कांपता हूं।। चमक