उम्मीदों के ताने-बाने बुनते रहते हो, ना जाने कितनों के ताने सुनते रहते हो, चंद लकीरों में जीवन का लेखा-जोखा, बेमानी बातों के मानी गुनते रहते हो, मिहनत से तक़दीर बदलते देखा कितनों की, बेमौसम कपास के दाने धुनते रहते हो, लूट में शामिल लोगों की फ़ेहरिस्त बहुत लम्बी, सुबह-शाम सबके अफ़साने सुनते रहते हो, तदबीरों का लेखा-जोखा पूछो सागर से, गर्म रेत पर जख़्म पुराने भुनते रहते हो, मेहनतकश से बच जाता है जो थाली 'गुंजन', बेबस बनकर उस खाने को चुनते रहते हो, ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' चेन्नई तमिलनाडु ©Shashi Bhushan Mishra #mohabbat बुनते रहते हो#