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प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में अपना एक हिस्

प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में
अपना एक हिस्सा खोता जा रहा हूं

महफिलों के शोर में,एक अंधी दौड़ में
तन्हाइयों के और नजदीक होता जा रहा हूं

रिश्तों के इस भीड़ में, खुदगर्जी के दौर में
इंसानियत से और दूर होता जा रहा हूं

तेज रफ्तार जिंदगी में, अनजाने राहो में 
अंदर कुछ थम गया है शायद दुनिया से कुछ और  दूर होता जा रहा हूं।

©Amit Sir KUMAR
  #flowers प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में....

#flowers प्रकृति से दूर, कंक्रीट के जंगलों में.... #शायरी

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