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शायद जुबां खामोश रहे, हर काम हमारा बोलेगा वो मंजर

शायद जुबां खामोश रहे, हर काम हमारा बोलेगा
वो मंजर भी आयेगा, हर जर्रा दाम हमारा बोलेगा
कौन सा पत्थर कितना बेशकीमती था, जान जाओगे
पर्वत का जर्रा जर्रा जब नाम हमारा बोलेगा
इन हवाओं में,फिजाओं में, महक हमारी भी होगी
इनका रेज़ा रेजा जब मुकाम हमारा बोलेगा
ईमां पे मरने वालो को क्या ख़ाक तौलेगा आलमें जहां
दरों दीवारो पर बस निशान हमारा बोलेगा 
हर तिनके को सिखाऊंगा जीने का फलसफा
बाद कहानी मेरे वजूद कि, बेलगाम जमाना बोलेगा
राजीव

©samandar Speaks
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