बढ़ चला धुँध का घेरा है दिखता क्या तेरा मेरा है ज़रा देख के बताना मुझे कहाँ उजाला है कहाँ अँधेरा है बंद कर विकास की ये दुकान रुक ज़रा सोच ले इंसान यहाँ बस बेचने वाली टोली है ख़रीदारी भी बनती भोली है पंछियों ने नाता तोड़ दिया हवाएँ भी उस ओर हो ली है प्रकृति खड़ी है लहू लुहान रुक ज़रा सोच ले इंसान जले जंगल तो आंसू आए कर्मठ नहीं सब जिज्ञासु आए वही जो बात बहुत करते हैं अंधेरों में बग़ीचे कटवाए ठूँस रखा है बस अभिमान रुक ज़रा सोच ले इंसान इन शहरों ने निगला गाँव को खेतों को पेड़ों की छाओ को मैं शाम से उनको ढूँढता हूँ पूछा कितने नेताओं को सुनने वालों में कोई है किसान? रुक ज़रा सोच ले इंसान #किसान #vatsa #dsvatsa #illiteratepoet #yqbaba #hindipoetry #hindipoem बढ़ चला धुँध का घेरा है दिखता क्या तेरा मेरा है ज़रा देख के बताना मुझे कहाँ उजाला है कहाँ अँधेरा है बंद कर विकास की ये दुकान रुक ज़रा सोच ले इंसान