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हथेली पे इश्क़ रक्खा नहीं होता, हुआ भी किसीका तो सब

हथेली पे इश्क़ रक्खा नहीं होता,
हुआ भी किसीका तो सबका नहीं होता।

लुत्फ़ इश्क़ का भी नहीं जबतक,
जोक सा ज़िसम में चिपका नहीं होता।

रंज  या  रब्त  में  चुनना  पड़ेगा,
शोले सा हर एक सिक्का नहीं होता।

मेहर है ग़ज़ल की, के जिंदा हूँ मैं,
मोहब्बत में होता तो कबका नहीं होता।

टूटे  हो ग़र  मेरी ग़ज़लें  उठाओ,
पढ़ो जबतलक दर्द हल्का नहीं होता।

म माँ से पढ़ता मैं व्यंजन 'डिअर',
जो शुरुआत में ये क का नहीं होता। #dearsdare #gazal #ghazal #yqdidi #love #life #poetry #newgazal
हथेली पे इश्क़ रक्खा नहीं होता,
हुआ भी किसीका तो सबका नहीं होता।

लुत्फ़ इश्क़ का भी नहीं जबतक,
जोक सा ज़िसम में चिपका नहीं होता।

रंज  या  रब्त  में  चुनना  पड़ेगा,
शोले सा हर एक सिक्का नहीं होता।

मेहर है ग़ज़ल की, के जिंदा हूँ मैं,
मोहब्बत में होता तो कबका नहीं होता।

टूटे  हो ग़र  मेरी ग़ज़लें  उठाओ,
पढ़ो जबतलक दर्द हल्का नहीं होता।

म माँ से पढ़ता मैं व्यंजन 'डिअर',
जो शुरुआत में ये क का नहीं होता। #dearsdare #gazal #ghazal #yqdidi #love #life #poetry #newgazal