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आँख मिचौली (दोहे) आँख मिचौली खेलती, देख छिपकली सा

आँख मिचौली (दोहे)

आँख मिचौली खेलती, देख छिपकली साथ।
बाहर करने को बढूँ, लगे नहीं वो हाथ।।

इधर उधर वो भागती, ऐसी है रफ़्तार।
विषधर है वो मानती, फिर भी है लाचार।।

डर से वह छिपती फिरे, होती वो नादान।
मानव इनसे काँपते, होते भी हैरान।।

पर बेचारी छिपकली, होती खुद भयभीत।
सीधी साधी है बड़ी, नहीं किसी से प्रीत।।

करती गुहार ईश से, कैसे ये इंसान।
मैं ही खुद भागी फिरूँ, और बचाऊँ जान।।

भोजन को मैं ढूंँढ़ने, तभी निकलती रात।
देख मुझे ये चौंकते, फिर देते आघात।।

झाडू डंडा जो मिले, मुझ पर करते चोट।
कैसे कैसे मैं बचूँ, दिखे न खुद में खोट।।
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देवेश दीक्षित

©Devesh Dixit 
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