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नज़र किसी बज्म ( महफिल)में आंखे भी बार बार उस पर

नज़र

किसी बज्म ( महफिल)में आंखे भी बार बार उस पर गई।
मैने लाख कोशिश की बचाने मगर उसी पर गई।

उसकी आंखे है या कोई जादूगरी ,
जिसने देखी उसके जिगर तक गई।

उस मतलबी की आंखों से भी अश्रु गिरे,
दिलकशी भरी नज़र काम कर गई।

उसके जमाल से रोशन है कायनात सारी,
किसी के दिल को भी तसल्ली कर गई।

उस बेखबर को भी कोई खबर करे 
की करीब है मार्ग-ए-रोहित ,
वो आंएगे जरूर अगर खबर उन तक गई।

©Rohit Kahar
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