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आख़िर क्या चाहता है वो मुझ से?? वो जब चाहे आए,जब च

आख़िर क्या चाहता है वो मुझ से??
वो जब चाहे आए,जब चाहे चला जाए, 
झूठ बोले और अपनी पहचान छुपाए मुझ से ,
और मैं फ़िर भी अपने दिल की बातें करूॅं उस से ??
वो अजनबियों की तरह पुकारे मुझे और मैं 
बेवकूफ़ों की तरह हर बार दौड़ी चली जाऊॅं मिलने उस से ??
ज़रा भी सवाल, नाराज़गी ना आए मेरे दिल में,
उसके रोज़ बदलते बरताव से और 
मैं ज़रा भी न डगमगाऊॅं अपने यक़ीन से ??

मैं भी तो इंसान ही हूॅं ना कोई बेजान चीज़ तो नहीं??
क्या दिल मेरा नहीं गुज़रता होगा अज़िय्यत और उलझनों से ??
मैं हर बार उसे समझूॅं लेकिन वो भी तो समझे कभी मुझे 
क्या इतनी सी भी उम्मीद ग़लत है मेरी उस से ??

उसे चाहिए कि, ख़ुद को मेरी जगह पर रख कर 
मेरे बारे में भी सोचे कभी और मुझे समझे कभी मेरे नज़रिए से,
तब शायद उसे समझ आ जाए कि... 
मैं हर रोज़ गुजरती हूॅं किस कश्मकश से।

ख़ैर, मैं भी न जाने क्यूॅं कोई उम्मीद लगा रही हूॅं किसी अजनबी से??

©Sh@kila Niy@z
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