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बूंदे नीचे गिर जमीं पर रूप वाहिनी का लेकर ये विली

बूंदे नीचे गिर जमीं पर
रूप वाहिनी का लेकर 
ये विलीन हो जाती हैं 
सिंधु में सब त्याग कर !

नही रुकती राह में वो,
न कहीं पे इठलाती हैं !
नित समर्पित भाव से 
सदा बह कर आती हैं !

उम्र भर उधार को ही 
जीया ये लबालब सिंधु 
फिर क्यों?इन बूंदों के 
वजूद को भूल जाता हैं !

रवि के तेज में तपता हैं
सागर नदियों का पानी !
हवा संग उड़ हो जाता हैं
सारा बनकर आसमानी!

मदमस्त हो फ़लक़ में 
क्यों?बादल मंडराता हैं
तप कर पानी वाष्प हो
ये खुद को भूल जाता हैं

-#रामकरण #WorldEnvironmentDay
बूंदे नीचे गिर जमीं पर
रूप वाहिनी का लेकर 
ये विलीन हो जाती हैं 
सिंधु में सब त्याग कर !

नही रुकती राह में वो,
न कहीं पे इठलाती हैं !
नित समर्पित भाव से 
सदा बह कर आती हैं !

उम्र भर उधार को ही 
जीया ये लबालब सिंधु 
फिर क्यों?इन बूंदों के 
वजूद को भूल जाता हैं !

रवि के तेज में तपता हैं
सागर नदियों का पानी !
हवा संग उड़ हो जाता हैं
सारा बनकर आसमानी!

मदमस्त हो फ़लक़ में 
क्यों?बादल मंडराता हैं
तप कर पानी वाष्प हो
ये खुद को भूल जाता हैं

-#रामकरण #WorldEnvironmentDay