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Ramkaran Badgoti
बूंदे नीचे गिर जमीं पर रूप वाहिनी का लेकर ये विलीन हो जाती हैं सिंधु में सब त्याग कर ! नही रुकती राह में वो, न कहीं पे इठलाती हैं ! नित समर्पित भाव से सदा बह कर आती हैं ! उम्र भर उधार को ही जीया ये लबालब सिंधु फिर क्यों?इन बूंदों के वजूद को भूल जाता हैं ! रवि के तेज में तपता हैं सागर नदियों का पानी ! हवा संग उड़ हो जाता हैं सारा बनकर आसमानी! मदमस्त हो फ़लक़ में क्यों?बादल मंडराता हैं तप कर पानी वाष्प हो ये खुद को भूल जाता हैं -#रामकरण #WorldEnvironmentDay
Ramkaran Badgoti
बूंदों का जमीं पे गिर नदियों से बह के आना लबालब सिंधु इनके वजूद को भूल जाता हैं! मंडराते हैं मदमस्त होकर फ़लक़ में ये बादल तपकर वाष्प हो पानी खुद को भूल जाता हैं! बेबसी को देख वबा में ये इंसानियत फरिस्ता पहले मैं इंसान हूँ सोनू सूद को भूल जाता हैं !! असली #नायक को साधुवाद 🇮🇳 ❤️😍🙏 -#रामकरण #opensky
Ramkaran Badgoti
बूंदों का जमीं पे गिर नदियों से बह के आना लबालब सिंधु इनके वजूद को भूल जाता हैं! मंडराते हैं मदमस्त होकर फ़लक़ में ये बादल तपकर वाष्प हो पानी खुद को भूल जाता हैं! बेबसी को देख वबा में ये इंसानियत फरिस्ता पहले मैं इंसान हूँ सोनू सूद को भूल जाता हैं !! असली #नायक को साधुवाद 🇮🇳 ❤️😍🙏 -#रामकरण #opensky
Ramkaran Badgoti
#LabourDay #श्रम_साधकों_को_कृतज्ञ_प्रणाम 🙏🙏🌹 हर दिन की शुरुआत तपती, इक दुपहरी सी होती हैं, थके जिस्म के आगे पहाड़ी ऊंची ,खाई गहरी सी होती हैं, वह कहां रुकता हैं पिछे हटता नही अपने जीवन पथ से गढ़नी हैंउसे स्वाभिमान की नगरी जो सुनहरी सी होती हैं! -#रामकरण #Labour_Day
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