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मैंने एक रोज़ तुम्हें अपने क़रीब आते देखा, उस दिन

मैंने एक रोज़ तुम्हें अपने क़रीब आते देखा,
उस दिन के बाद मैं जग से घबराना भूल गयी।

मैने एक  रोज़ तुम्हें भोर संग खिलते देखा,
उस दिन के बाद मैं दुःख से मुरझाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें सहज धूप में चलते देखा,
उस दिन के बाद मैं छाँव का ठिकाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें जब मुस्कुराते हुए देखा,
उस दिन के बाद मैं दर्द में आँसू बहाना भूल गयी।

मैने एक रोज़  तुम्हें  बारिश में भीगते देखा,
उस दिन के बाद मैं अपना आप तपाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें कोई ख़्वाब सजाते देखा,
उस दिन के बाद मैं आप रातों को जगाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें मौसमों सा बदलते देखा,
उस दिन के बाद मैं रात का आना जाना भूल गयी।

फिर मैने एक रोज़ तुम्हें ख़ुद से दूर जाते देखा,
उस दिन के बाद मैं गैरों को अपना बनाना भूल गयी।

अबोध_मन//’फरीदा’

©अवरुद्ध मन #अबोध_मन  
#अबोध_ग़ज़ल  #खोयाक्या_पायाक्या
#कच्चा_घड़ा_था_सोहनी
मैंने एक रोज़ तुम्हें अपने क़रीब आते देखा,
उस दिन के बाद मैं जग से घबराना भूल गयी।

मैने एक  रोज़ तुम्हें भोर संग खिलते देखा,
उस दिन के बाद मैं दुःख से मुरझाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें सहज धूप में चलते देखा,
उस दिन के बाद मैं छाँव का ठिकाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें जब मुस्कुराते हुए देखा,
उस दिन के बाद मैं दर्द में आँसू बहाना भूल गयी।

मैने एक रोज़  तुम्हें  बारिश में भीगते देखा,
उस दिन के बाद मैं अपना आप तपाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें कोई ख़्वाब सजाते देखा,
उस दिन के बाद मैं आप रातों को जगाना भूल गयी।

मैने एक रोज़ तुम्हें मौसमों सा बदलते देखा,
उस दिन के बाद मैं रात का आना जाना भूल गयी।

फिर मैने एक रोज़ तुम्हें ख़ुद से दूर जाते देखा,
उस दिन के बाद मैं गैरों को अपना बनाना भूल गयी।

अबोध_मन//’फरीदा’

©अवरुद्ध मन #अबोध_मन  
#अबोध_ग़ज़ल  #खोयाक्या_पायाक्या
#कच्चा_घड़ा_था_सोहनी