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अंग अंग है अभ्र सी आभा कंठ सुरा


अंग अंग है अभ्र सी आभा 
                 कंठ सुराहीदार..
चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा 
               मोह लियो संसार..

श्यामल श्यामल केश तुम्हारे 
पवन रही लिपटाय 
जैसे जनम जनम की प्यासी 
बिरहन राग लगाय
मस्त मस्त दो नयनकमल 
उनमे कजरे की धार 
तरस रहे हैं कब मिल जाये
एक झलक दीदार..
चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा 
मोह लियो संसार..

रंग गुलाबी लिये अधर जब 
तनक भरें मुस्कान 
सम्मोहन की कला दिखाकर 
घायल करे जहान 
जिस पथ को बढ़ जाओ तुम
हो लाखों दिल कुर्बान 
बाम गाल में इसीलिए तिल 
नज़र करे न वार..
चन्द्रमुखी क्या रूप तुम्हारा 
मोह लियो संसार..

बिन सोलह श्रृंगार तुम्हारा 
कंचन बदन कमाल 
नखशिख ऐसी शोभा तेरी 
नज़र पड़े वो निहाल 
एक तुम्हीं हो रुप की रानी 
बाकी सब कंगाल 
जिसको नज़र उठाकर देखो 
जीवन जाये हार..
चंद्रमुखी क्या रूप तुम्हारा 
मोह लियो संसार..

©अज्ञात
  #गीत