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एकता का सार - रथयात्रा त्यौहार भाग - 2 तीनों देवत

एकता का सार - रथयात्रा त्यौहार भाग - 2

तीनों देवताओं की मूर्तियों को 
कारीगरी कर लकड़ी से तराशा जाता है,
तीन  रथ  शामिल  होते  हैं इसमें  
जिन्हें मोटे रस्सों से  खींचा  जाता है,
दूसरा सबसे बड़ा रथ  नंदीघोष 
जिसमें  भगवान जगन्नाथ हैं  विराजित,
त्रिलोक्यमोहिनी ध्वज लहराए जिसमें
जो गरुड़ध्वज भी  कहलाता है।

लाल पीला रंग सजा  सोलह पहियों का रथ
दारूक जिसका सारथी,
यही रंग है पहचान, नगर भ्रमण  को आ रही है  
सवारी जगन्नाथ की,
तालध्वज  है भाई  बलराम का रथ 
और दर्पदलन है बहन सुभद्रा का,
मातरि हैं सारथी तालध्वज के
अर्जुन  करे अगुवाई  सुभद्रा  रथ की।

चौदह पहियों वाला रथ तालध्वज
 लाल हरे रंग से होता  है सुशोभित,
दर्पदलन बारह पहियों वाला रथ
लाल काला रंग  करे जिसे शोभित,
प्रतिवर्ष भव्य रथ यात्रा के लिए 
किया जाता  है नए रथों का निर्माण,
सौंदर्य  ऐसा अनुपम  इस रथ यात्रा का
कि देख  हो जाएँ अचंभित।

श्रद्धा और भक्ति भाव से जो खींचे रथ
होता  वो बड़ा ही  भाग्यवान,
मोक्ष की प्राप्ति होती उसकी
देते  आशीर्वाद स्वयं जगन्नाथ भगवान,
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीय से होता है  
भव्य रथ यात्रा का आरंभ,
सामूहिक रूप से भगवान जगन्नाथ की 
पूजा का अवसर है ये महान।

©Mili Saha
  रथ यात्रा
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